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सुप्रीम कोर्ट के नाम खुला पत्र: बिहार के न्यायालयों में खतरे में है न्याय

सुरेन्द्र किशोरी,
चर्चित बिहार बेगूसराय। नागरिक अधिकार सुरक्षा समिति ने उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के नाम खुला पत्र जारी कर न्यायालयों में व्याप्त व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़ा किया है। समिति के अध्यक्ष वशिष्ट कुमार अम्बस्ट एवं सचिव अधिवक्ता विजयकांत झा खुला पत्र में कहा है कि बिहार के मुफस्सिल न्यायालयों में न्याय खतरे में है। पटना उच्च न्यायालय दशकों से न्यायिक अधिकारियों पर लगाए गए भ्रष्टाचार एवं अक्षमता की शिकायत पर जांच भी नहीं करती है। विभिन्न उत्सवों की आड़ में न्यायिक अधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता के नाम पर अपराधियों तक के यहां भोज में शामिल होने लगे हैं। बिहार के व्यवहार न्यायालयों में निष्पक्ष न्यायपालिका का अस्तित्व खतरा पर है। बेगूसराय के जिला न्यायाधीश के सेवानिवृत्ति एवं कई न्यायिक अधिकारियों के पदोन्नति के नाम पर सीमेंट कालाबाजारी के अभियुक्त के यहां भी भोज में शामिल होने से वरिष्ठ न्यायिक अधिकारियों ने परहेज नहीं किया। अब तो मोवकील भी वैसे वकीलों को खोजने में लगे हैं जो किसी न किसी रूप से न्यायिक अधिकारियों के करीब होते हैं। बेगूसराय व्यवहार न्यायालय के नवनिर्मित भवन का उद्घाटन बिना लिफ्ट एवं शौचालय चालू किए ही करवा दिया गया। हाल ही में 94 न्यायिक अधिकारियों को अपर जिला न्यायाधीश के रूप में प्रमोशन बिना उनकी कार्य दक्षता जांच किये ही कर दिया गया। बिहार के न्यायालयों में विवादित दीवानी एवं आपराधिक वादों का निष्पादन का प्रतिशत घटता जा रहा है। अपराधियों की सुनवाई का अधिकार एक साथ मिलने से न्यायालय कक्ष में अराजक स्थिति उत्पन्न होते जा रहा है। तारीख पर अभिलेख न्यायालय में उपलब्ध नहीं रहता है। कॉज लिस्ट की तारीख और अभिलेख की तारीख में अंतर होते रहता है। नकल समय नहीं मिलता है। प्रशासनिक स्तर पर कोई ठोस अनुशासनिक कार्रवाई नहीं होती है। जिससे निचले स्तर के भ्रष्टाचारी का मनोबल बढ़ता जा रहा है। इन लोगों का कहना है कि बिहार के न्याय व्यवस्था में सुधार हेतु तथा भ्रष्टाचार रोकने की दिशा में ठोस कार्रवाई करके, न्यायालय की पवित्र परंपरा को बरकरार रखा जा सकता है। देश के चार न्यायमूर्ति ने जब आने वाले मानवीय खतरों से आगाह किया तो आशा जगी है कि न्यायपालिका में आने वाले खतरों से भी आगाह कर दिया जाए। जिससे न्यायिक व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त रह सके।

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