किसने सोचा था कोरोना की दूसरी लहर कोहराम बनकर बरपेगा और ना जाने कितनों का घर उजारेगा
किसने सोचा था कोरोना की दूसरी लहर कोहराम बनकर बरपेगा और ना जाने कितनों का घर उजारेगा?
कोमल सुल्तानिया
जीवन का ये दौर इस कदर खत्म हो जाना कुछ अजीब सी है.. देखते ही देखते अपनों से सदा के लिए बिछड़ जाना, कितना दर्दनाक होता है.. ये एहसास जज्बात सिर्फ तब तक होते है जब तक आपके दिलों में उनकी यादें होती है.. क्षण भर में अपनों का सर से साया हट जाना, कितना दर्दनाक है.. यूं अपनों का अपनो से बिछड़ जाना तन्हाई भरी जीवन है.. जिन्दगी का वीरान होना कितना कुछ खुद में बयान करती है..
भारत में कोरोना वायरस महामारी को एक साल से अधिक समय हो चुका है और देखते ही देखते कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने ऐसी रफ़्तार पकड़ी कि लोगों का दिल दहलना लगा..
कोरोना वायरस के मामले उस दौरान बढ़ने लगे जब देशभर में टीकाकरण अभियान शुरू हो गया. जनवरी से शुरु हुए इस अभियान को लगभग सात महीने बीत गए लेकिन वैक्सीनेशन और हर्ड इम्यूनिटी का कोई प्रभाव नहीं दिखने को मिला..
कोरोना वायरस के जो नए वैरिएंट मिले हैं वो ज़्यादा संक्रामक हैं. यूके के नए स्ट्रेन में भी यही पाया गया. ऐसे में वायरस और लोगों के व्यवहार में एकसाथ हुए बदलाव ने दूसरी लहर को जन्म दे दिया है.” लगभग सारे देशों में पहली लहर के मुक़ाबले दूसरी लहर ज़्यादा ख़तरनाक रही. ये एक प्राकृतिक प्रक्रिया है लेकिन जब लोग असावधान हो जाते हैं तो वायरस के लिए स्थितियां और अनुकूल हो जाती हैं. वर्तमान में भी ऐसा ही हो रहा है. हालांकि, उसकी बीमारी करने की क्षमता तुलनात्मक रूप से कम होती है.
जैसे ही कोरोना वायरस का पहला लहर कम होने लगा तब से लोग लापरवाह होने लगे.. लोगों ने मास्क लगाना, बार-बार हाथ धोना और सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखना कम कर दिया साथ ही कई लोगों को लगने लगा कि वैक्सीन की एक डोज़ लेने के बाद ही वो इम्यून हो गए हैं. उन्हें कोरोना नहीं होगा.. हालांकि लोगों का यही आकलन उनके जीवन पर बेहद भारी पड़ा..
कोरोना के बढ़ते मामलों के साथ ही हर्ड इम्यूनिटी को लेकर भी चर्चा शुरू हुई थी. माना जा रहा था कि हर्ड इम्यूनिटी आने पर कोविड-19 का ख़ात्मा हो सकता है लेकिन, फिलहाल ऐसा नहीं हुआ है.
एक नए वायरस जिनके लिए शरीर में बिल्कुल भी एंटीबॉडी नहीं है जिसकी वजह से स्वत: संक्रमण होने से हर्ड इम्यूनिटी नहीं आ सकती है. नई बीमारियों से लड़ने के लिए वैक्सीनेशन की भी ज़रूरत पड़ती है ताकि लोगों में इम्यूनिटी बन सके.
मौजूदा नए वैरिएंट का कम घातक होना भी मौत के आंकड़ों पर थोड़ा असर डाल रहा है. फिर लोग पहले के मुक़ाबले ज़्यादा जागरुक होने लगे और इसके लक्षणों को पहचानकर इलाज कराने लगे हैं.
ऐसे में कोरोना के अंत और उसके तरीक़ों को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं. पहला तो ये कि कोरोना महामारी की पहली लहर 2020 में जहां एक दिन में 97 हज़ार मामले होने में सितंबर तक का समय लग गया था वहीं, इस साल फरवरी से मई के बीच प्रतिदिन लाखों नए मामले सामने लगे और हजारों की तादाद में मौत होने लगी. कोरोना फैलने की रफ़्तार में इतनी तेज़ी की वजह क्या हो सकती है?
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इस कोरोना के आगे उन बच्चों पर भी रहम नहीं फरमाया जिनके सिर से माता-पिता का साया छिन लिया.. इस संसार में उन लाखों हजारों परिवारों के बारे में नहीं सोचा कि आगे का जीवन कितना संघर्ष की काटों से भरा होगा? यूं हस्ते खेलते परिवार में रातों रात मातम छा जाना. अपने जीवन को लेकर सवालों के कटघरे में खड़ा कर देना.. जिन्दगी को इस कदर खामोश कर देना.. कितना दर्दनाक है..